2025-01-27T09:59:00 Future University
आयुर्वेद, जीवन का विज्ञान, स्वास्थ्य की एक व्यापक प्रणाली है, जो अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है और निरंतर वृद्धि के साथ विकसित होती है। हमारी जीवनशैली बदल रही है, साथ ही प्रकृति भी बदल रही है, जिसका हमारे स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है । गुदा विदर भी उसी परिदृश्य में आ गया है, जिसका उल्लेख पहले अन्य गुदा-मलाशय रोगों के साथ किया गया है। अब यह एक अलग बीमारी बन गई है। आयुर्वेद शब्दावली के अनुसार गुदा विदर के लिए समान शब्द परिकर्तिका है।
परिकर्तिका जिसे गम लोग फ़िशर या गुदा मार्ग मे घाव के रूप में जानते हैं। यह आजकल होने वाली एक सामान्य बिमारी है। इसमें शौच के समय गुद मार्ग में पीड़ा होना. जलन होना तथा खून का आना सामान्य लक्षण है। जिसे सामान्यत: लोग बवासीर ही समझते हैं, पर यह अलग बीमारी है। अधिकतर लोग शर्म के कारण किसी को बता नही पाते और परेशान रहते हैं तथा समय से इलाज न होने से बीमारी भी गम्भीर रूप ले लेती है। जिसके लिये बाद में operation की आवश्यकता पडती है। यदि समय रहते इसके बारे में पता चल जाए तो आयुर्वेद औषधियों एवं अपने खान पान के बदलाव करने से इसे ठीक किया जा सकता हैं।
वात वृद्धि और कफ के कमी होने से शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं जिसमे बृहदानत्र, मलाशय एवं गुदा क्षेत्र प्रभावित होते हैं। वात वृद्धि के कारण मल अत्यधिक सूख जाता है जिससे कब्ज की शिकायत होती है। जब कब्ज या कठोर मल होता है तब व्यक्ति जोर लगाता है, जिस कारण फ़िशर या परिकर्तिका हो जाता है।
ज्यादा तीखा, खट्टा, तेल, मसाले तथा bakery products से यह बीमारी उग्र हो जाती है। इस बीमारी से बचाव के लिये हमे मसाले तथा तीखे पदार्थों का उपयोग कम करना होगा। पुराने लाल चावल, जौ, चना, हलके और आसानी से पचने वाले पदार्थो का प्रयोग करना चाहिये । शौच के समय अधिक जोर लगाने से बचे, हरी पत्तेदार सब्जिया खाये तथा पानी अधिक मात्रा में पिये। इसके साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधि जैसे हरीतकी, चूर्ण, त्रिपला, गुग्गुल, जात्यादि तैल इत्यादि भी इसमें बहुत लाभप्रद है। अत्यधिक दर्द और जलन होने पर टब में हल्का गर्म पानी कर के उसमें 10-15 मिनट बैठे।
इसलिए एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में, यह हमारा कर्तव्य है कि हम रोग को समझें। रोग के बारे में हमारे मन में जो तस्वीर है वह स्पष्ट होनी चाहिए और उसमें आयुर्वेदिक नियम का पालन होना चाहिए। उपचार का सासान्य सिद्धांत कारण को दूर करना और बीमारी का इलाज करना है। अग्रि को बनाए रखना चाहिए और साथ ही उचित उपचार के लिए उचित वातारण प्रदान करना चाहिए।
डॉ. जिशान अहमद अंसारी, (सहायक प्रोफेसर),
FIAMS फ्यूचर यूनिवर्सिटी, बरेली, यूपी। भारत।